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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

अथवा
"तत्रापि च चतुर्थोऽङ्कः तत्र श्लोकचतुष्टयम्" की समीक्षा कीजिए।

उत्तर -

अभिज्ञानशाकुन्तलम् को प्रायः सभी आलोचक श्रेष्ठ मानते हैं इस नाटक के सभी नाटकीय तत्वों वस्तु, नेता तथा रसादि में सरसता, सुन्दरता तथा स्वाभाविकता दृष्टिगोचर होती है। भाषा की कलात्मकता एवं सरसता सर्वथा श्लाघ्य है। कथावस्तु के परिवर्तन भी मौलिकतापूर्ण एवं आकर्षक हैं। भावाभिव्यंजना शैली भी सर्वथा ग्रहण करने योग्य हैं। रस आदि की दृष्टि से भी यह रचना अति उत्तम कही जा सकती है। यही कारण है भारत के ही नहीं वरन् विदेशों के भी अनेकानेक विद्वानों ने कालिदास की अत्यधिक प्रशंसा की है। अमेरिका के "राइडर" नामक विद्वान ने कालिदास की अत्यधिक प्रशंसा की है।

अभिज्ञानशाकुन्तलम् में भी विद्वानों ने चतुर्थ अंक को सर्वश्रेष्ठ बताया है। यदि गंभीरता से देखा जाये तो यह अंक संपूर्ण नाटक का केन्द्र बिन्दु है। दुष्यन्त का शकुन्तला के साथ गान्धर्व विवाह तो हो जाता है तथा वह शकुन्तला से कह भी जाता है कि मैं तुम्हें जल्द ही अपने पास बुला लूँगा। परन्तु चतुर्थ अंक में पहुँचकर नाटक एक नया मोड़ लेता है। दुष्यन्त की याद में खोई हुई शकुन्तला महर्षि दुर्वासा के आगमन को नहीं जान पाती है, इसीलिए दुर्वासा शाप दे देते हैं कि जिस प्रकार आश्रम में आये हुए मुझ अतिथि को नहीं जान पा रही हो और जिसकी चिन्ता में खोई हो वह भी तुम्हें नहीं जान पायेगा। इसी शापवृत्तान्त से कवि को रस परिपाक में सहायता मिलती है। यदि इस शापवृत्तान्त को न प्रस्तुत किया जाता तो शकुन्तला महर्षि कण्व के आगमन के पश्चात् सीधे ही पतिगृह चली जाती और नाटक समाप्त हो जाता। शाप के कारण दुष्यन्त शकुन्तला को भूल जाता है जिसके परिणामस्वरूप शकुन्तला को महर्षि मारीच के आश्रम में विरह व्यथा सहन करते हुए रहना पड़ता है। दारुण विरह व्यथा को सहन करते हुए अन्त में दोनों का सुखद मिलन होता है। यदि कवि विप्रलम्भ का इतना मार्मिक चित्रण न करता तो सम्भोग उतना आकर्षक नहीं बन पाता। कविराज विश्वनाथ ने सत्य ही कहा है -

"न बिना विप्रलम्भेन सम्भोगः पुष्टिमश्नुते।
कषायिते हि वस्त्रादौ भूयान् रागो विवर्धते॥"

शकुन्तला की विदा वेला भी इस अङ्क का महत्वपूर्ण पक्ष है। अपनी लाड़ली पुत्री शकुन्तला की विदा वेला पर धीर, संयत, शान्त एवं तपस्वी महर्षि कण्व भी अपने को रोक नहीं पाये। उनके धैर्य का बांध टूट जाता है और वह भी लौकिक पुरुषों की तरह दुःखी हो जाते हैं। उनकी समस्थिति विषमता के स्वरूप को धारण कर लेती है, उनके हृदय से मधुर वात्सल्य रस प्रस्फुटित होने लगता है, अतएव वे कहते हैं-

"यास्यत्यद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया
कण्ठः स्तम्भितबाष्पवृत्तिकलुषश्चिन्ताजडं दर्शनम्।
वैक्लव्यं मम तावदीदृशमिदं स्नेहादरण्यौकसः
पीड्यन्ते गृहिणः कथं नु तनयाविश्लेषदुः खैर्नवैः I'

इसके अतिरिक्त शकुन्तला की विदा वेला पर केवल तपस्वी ही दुःखित नहीं होते अपितु वहाँ के वृक्षादि भी अपना कर्तव्य पालन करते हैं, क्योंकि वे सब शकुन्तला के भाई सदृश हैं। तभी तो कोई वृक्ष रेशमी वस्त्रों का जोड़ा प्रस्तुत करता है तो कोई पैरों में लगाने वाले महावर को देता है तथा अन्य सुन्दर- सुन्दर आभूषण प्रस्तुत करे हैं। वे स्वयं इस बात की चिन्ता रखते हैं कि उनकी बहन शकुन्तला अपने पतिगृह जा रही है, कहीं ऐसा न हो कि वह किन्हीं आभूषणों से वंचित रह जाये। यह सारा उत्तरदायित्व तो उन्हीं का है। लोग उन्हीं को बुरा-भला कहेंगे बड़ी थी लाड़ली, हाथों हाथ पानी देती थी, प्यार करती थी, पर ये एक आभूषण भी न दे सके। वृक्ष वनस्पति भी समझदार हैं। शकुन्तला के लिए जो कुछ कर सकते थे, किया ! कालिदास का यही मानवीकरण सहृदयजन को भाव विभोर कर देता है।

शकुन्तला की विदाई से केवल कण्व को ही दुःख नहीं होता अपितु उससे संबंधित सभी पेड़-पौधे एवं पशु-पक्षी भी शोक संतप्त हो जाते हैं। हरिणियाँ कुश के ग्रास को ग्रहण नहीं करती हैं, मयूर नाचना छोड़ देते हैं, लताएँ पीले पत्ते गिराकर शकुन्तला की विदाई पर मानों आंसू बहा रही हों। ठीक ही तो है आश्रम में साथ रहने वाली अपनी लता बहनों का पहले जल पिलाकर फिर स्वयं जल ग्रहण करने वाली उनके दुःख-सुख की सहभागिनी सच्ची सखी शकुन्तला आज जब उनसे अलग हो रही है तो उसकी विदा पर चार आंसू बहाकर अपनी हार्दिक मनोव्यथा को अभिव्यक्त नहीं करेगी? आखिर उनके हृदय भी नारी सुलभ सहज कोमलता से पूर्ण हैं अतः उनके द्वारा अपनी प्रिय सखी की विदा वेला पर आंसू बहाना सर्वथा उचित है। हरिणियाँ कुश ग्रास उगल देती हैं, मयूर नृत्य छोड़ देते हैं। यह विषय भी अत्यधिक स्वाभाविकता को प्रस्तुत करता है। जिन हरिणियों को शकुन्तला स्वयं अपने कोमल हाथों से पुचकार कर कुश के मीठे- मीठे ग्रास खिलाती थी, आज उस शकुन्तला से अलग होने पर कुश के कवल भला कैसे अच्छे लग सकते हैं। जिन मयूरों को शकुन्तला ताली बजाकर नाचना सिखाती थीं, जिनसे उसे भाई के समान स्नेह था, वे शकुन्तला की विदावेला पर भला कैसे नृत्य कर सकते थे।

महर्षि कण्व के द्वारा राजा दुष्यन्त को भेजा गया सन्देश भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है महर्षि कण्व कहते हैं-

''अस्मान् साधु विचिन्त्य संयमधनानुच्चैः कुलं चात्मन -
स्त्वय्यस्याः कथमप्यबानध्वकृतां स्नेहप्रवृत्तिं च ताम्।
सामान्यप्रतिपत्तिपूर्वकमियं दारेषु दृश्या त्वया
भाग्यायत्तमतः परं न खलु तद्वाच्यं वधूबन्धुभिः॥

इस श्लोक में महर्षि कण्व कहते हैं कि संयम रूपी धन वाले हम लोगों का विचार करना। हम लोगों के पास केवल संयम ही है। धन आदि के द्वारा हम तुम्हारा सत्कार नहीं कर सकते। तुम्हें अपने उच्च वंश की मर्यादा का भी ध्यान रखना चाहिए, जिसमें पत्नी परित्याग आदि नहीं हुआ है। अपने प्रति शकुन्तला के प्रेम भाव को ध्यान में रखना तथा शकुन्तला को अपनी पत्नियों के समान अधिकार देना। उसके बाद तो भाग्य के अधीन होता है। हम यह कभी नहीं कह सकते हैं कि इसे प्रधान रानी (पटरानी) बना दें क्योंकि यह सब बातें तो भाग्य के ऊपर आश्रित रहती हैं। इसलिए ऐसी बातों को कन्या के बन्धु बान्धवों को नहीं कहना चाहिए।

इस प्रकार हम देखते हैं कि चतुर्थ अङ्क नाटयशैली की दृष्टि से रसपरिपाक की अदभुद सृष्टि से मार्मिक भावों तथा मनोहर आदेशरूपी अमृत की दृष्टि से समस्त नाटक में श्रेष्ठता को पा लेता है। इसीलिए विद्वानों ने "तत्रापि च चतुर्थोऽङ्क" ऐसा कहा है।

तत्र श्लोकचतुष्यटम्

अभिज्ञानाशंकुन्तलम् महाकवि कालिदास की रसभाव परिपूर्ण सुन्दर नाटक कृति है। शाकुन्तलम् का एक-एक वाक्य अत्यन्त सुन्दर एवं प्रभावशाली है। कहीं-कहीं तो कवि ने चमत्कार की सीमा का अतिक्रमण कर दिया है। शाकुन्तलम् नाटक का चतुर्थ अङ्क अत्यन्त उत्कृष्ट बतलाया गया है। इसमें भी निम्नलिखित चार श्लोक अति सुन्दर हैं-

यास्यत्यद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया,
कण्ठः स्तम्भितबाष्पवृत्तिकलुषश्चितन्ताजडं दर्शनम्।
वैक्लव्यं मम तावदीदृशमिदं स्नेहादरण्यौकसः
पीड्यन्ते गृहिणः कथं नु तनयाविश्लेषदुः खर्नवैः॥
शुश्रूषस्व गुरून् कुरु प्रियसखीवृत्तिं सपत्नीजने,
भर्तर्विप्रकृतापि रोषणतया मा स्म प्रतीपं गमः।
भूपिष्ठ भव दक्षिणा परिजने भाग्येष्वनुत्सेकिनी
यान्त्येव गृहिणीपदं युवतयो वामाः कुलस्याधयः॥
अस्मान् साधु विचिन्त्य संयमधनानुच्चैः कुलं चात्मन -
स्त्वय्यस्याः कथमप्यबान्धवकृतां स्नेहप्रवृत्ति च ताम्।
सामान्यप्रतिपत्तिपूर्वकमियं दारेषु दृश्या त्वया
भाग्यायत्तमतः परं न खलु तदवाच्यं वधूबन्धुभिः॥
अभिजनवतो भर्तुः श्लाध्ये स्थिता गृहिणीपदे,
विभवगुरुभिः कृत्यैस्तस्य प्रतिक्षणमाकुला।
तनयमचिरात्, प्राचीवार्क प्ररण्य च पावनं,
मम विरहजां न तवं वत्से गुचं गणयिष्यसि॥

अथवा

भूत्वा चिराय चतुरन्तमहीसपत्नी,
दौष्यन्तिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य।
भर्त्रात दर्पितकुटुम्बभरेण सार्धं,
शान्तु करिष्यसि पदं पुनराश्रमेऽस्मिन्॥

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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